Bhagvat Geeta Book PDF Download: हर हिंदू जानता है कि श्रीमद् भागवत गीता हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ है। कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाया था। श्री कृष्ण ने यह जन सामान्य के हित के लिए इस महा ज्ञान को श्रीमद् भागवत गीता के रूप में प्रस्तुत किया था। क्या आप भी Bhagvat Geeta Book PDF पढ़ने के इछुक है।
दोस्तो, अगर आप भी भागवत गीता पढ़ना चाहते हैं तो Bhagvat Geeta Book PDF के माध्यम से इस किताब को डाउनलोड कर सकते हैं और भगवत गीता में दिए गए ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिए भगवत गीता की highlights के बारे में जाने –
Contents
Bhagvat Geeta Book PDF Download
PDF name | Bhagvat Geeta book Pdf in Hindi श्रीमद्भागवत गीता |
Total pages | 1305 |
PDF size | 8.05 MB |
Language | Hindi |
Category | Spirituality |
Formate |
Bhagwat Geeta PDF with Hindi meaning (भागवत गीता का हिंदी अर्थ)
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम् ।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम् ।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुहां गीता में परमो गुरुः ।।
भगवान श्री कृष्ण के कथन के अनुसार :-
श्रीमद्भागवत गीता श्री कृष्ण जी का हृदय है। गीता उनका उत्तम सार है। गीता उनका अति उग्र ज्ञान है। गीता उनका अविनाशी ज्ञान है। गीता कृष्ण जी का श्रेष्ठ निवास स्थान है। गीता उनका परम पद है, परम रहस्य है और परम गुरु है।
गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम् ।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम ॥
श्रीमद् आद्य शंकराचार्य जी के अनुसार :- यदि गाने योग्य कुछ है तो वह श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान है और ध्यान करने योग्य कुछ है तो भगवान विष्णु का ध्यान है। चित्त सज्जनों के साथ लगाने योग्य है और वित्त दीन दुखियों को देने योग्य है।
स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार :- श्रीमद्भागवत वह अध्यात्मिक सत्य रूपी फूलों का गुथा हुआ गुच्छा है जो गीता उपनिषद रूपी बगीचों में से चुने हुए फूलों का है।
महर्षि व्यास जी के अनुसार :- भगवान श्री कृष्ण के मुख कमल से निकली हुई गीता को अच्छी तरह से याद अर्थात कंठस्थ कर लेना चाहिए। अन्य शास्त्रों के विस्तार से कोई लाभ नही है।
श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक इन हिंदी | Bhagvat Geeta Book PDF
इस किताब में भागवत गीता के प्रसिद्ध श्लोक हिंदी के अर्थ के साथ प्रकाशित है। श्रीमद् भागवत गीता का उपदेश महाभारत में कौरव और पांडवों के युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास है।
नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आप Bhagwat Geeta in Hindi pdf डाउनलोड कर सकते हैं:-
कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार से हैं :-
(1) न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
हिंदी अर्थ :- बिना किसी संदेह के हर मनुष्य हर क्षण में कर्म करता ही है क्योंकि सभी जन समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परतंत्र है जो कर्म करने के लिए बाध्य होते हैं।
(2) कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
हिंदी अर्थ :- ऐसा व्यक्ति जो जिद करके अपने सभी इंद्रियों को ऊपर से रोक लेता है पर मन ही मन उन इंद्रियों के विषय का चिंतन करता रहता है। ऐसा बुद्धि हीन व्यक्ति मिथ्याचारी कहलाता है।
(3) उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
हिंदी अर्थ :- कोई भी काम बिना परिश्रम किये पूरा नहीं हो सकता। यदि आप किसी काम के बारे में सोचेंगे परंतु उसे पूरा करने के लिए परिश्रम नहीं करेंगे तो वह काम कभी भी पूरा नहीं होगा। शेर भले ही बलवान है परंतु उसे खुद उठकर हिरण का शिकार करना ही होगा। हिरण कभी भी स्वयं चलकर उसके मुंह में नहीं जाएगा।
(4) परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्।
परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।।
हिंदी अर्थ :- पराया अन्न, पराया धन, पराई स्त्री, पराया दान और दूसरे लोगों की निंदा, इन सब की इच्छा मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिए।
(5) आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥
हिंदी अर्थ :- जीवन सबसे कीमती है यह बेशकीमती रतन से भी ज्यादा कीमती है। इस जीवन का एक भी पल वापस नहीं लाया जा सकता। इसीलिए इसे फिजूल के कामों में बिल्कुल भी खर्च नहीं करना चाहिए और अपनी जिंदगी का हर एक पल सदकर्म में लगाना चाहिए।
श्रीमद् भागवत गीता के अध्याय
यहां पर हमने भागवत गीता महाकाव्य का सार और अर्थ को सरल शब्दों में समझाने का समझने का प्रयत्न किया है।
(अध्याय – 1) अर्जुन -विषाद योग :-
पहला अध्याय में श्री कृष्ण ने 47 श्लोक के माध्यम से अर्जुन की मनोस्थिति का वर्णन किया है जिसमें वह बताते हैं कि मनुष्य का असली घर परमधाम है। पृथ्वी केवल एक कर्म भूमि है। जो धर्म के साथ कर्म करता है वही कर्म उस मनुष्य के साथ जाते हैं।
(अध्याय -2) सांख्य-योग :-
इस अध्याय में कुल 72 श्लोक है। इस अध्याय मे पूरी गीता का सारांश बताया गया है। इस अध्याय को भागवत गीता का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। इस अध्याय में अर्जुन श्री कृष्ण से अपने मन के विचारों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं अपने जनों पर बाण कैसे चला सकता हूं। अंत में लोग क्या कहेंगे कि राज पाठ के लालच में आकर मैंने युद्ध किया और अपनों को आघात पहुंचाया।
फिर श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग, ज्ञान योग सांख्य योग, बुद्धि योग इत्यादि का ज्ञान देते हुए कहा कि आखिर आत्मा को कौन मार सकता है और यह शरीर तो है ही नश्वर।
(अध्याय -3) कर्मयोग :-
इस अध्याय में कुल 43 श्लोक है। इस अध्याय को कर्म योग भी माना जाता है। इस अध्याय में अर्जुन को कर्म करने से संबंधित वर्णन किया गया है।
(अध्याय -4) ज्ञान कर्म संन्यास योग :-
इस अध्याय में कुल 42 श्लोक है। इस में श्री कृष्ण अर्जुन को समझते हैं कि धर्म परायण के संरक्षण और अधर्मी का नाश करने के लिए गुरु का मार्ग दर्शन प्राप्त करना ही चाहिए। गुरु के द्वारा बताए गए रास्ते का अनुसरण करना शिष्य का कर्तव्य होता है। इसीलिए तुम भी रणभूमि में युद्ध करने के लिए तैयार होगा।
(अध्याय -5) आत्मसंयम योग :-
इस अध्याय में कुल 47 श्लोक है इस अध्याय में श्री कृष्णा अष्टांग योग के बारे में अर्जुन से कहते हैं कि किस प्रकार मन को एकाग्र किया जा सकता है और मन की दुविधाओं को दूर किया जा सकता है।
(अध्याय -6) ज्ञानविज्ञान योग :-
इस अध्याय में कुल 30 श्लोक है जिसमें बताया गया है कि संसार शाश्वत नहीं है। एक दिन सब कुछ नष्ट हो जाना है। कुछ भी अमर नहीं है। इस संसार में कोई भी किसी का नहीं है।
(अध्याय -7) अक्षरब्रह्मयोग :-
इस अध्याय में कुल 28 श्लोक हैं जिसमें बताया गया है कि अक्षर ही ब्रह्म है और उसी की शक्ति से पूरा ब्रह्मांड गतिमान है। इसलिए परमात्मा का चिंतन करते रहना चाहिए। इस अध्याय में नर्क और स्वर्ग का सिद्धांत भी शामिल है।
(अध्याय -8) राजविद्याराजगुह्य योग :-
इस अध्याय में कुल 34 श्लोक है। इसमें अर्जुन से कृष्ण कहते हैं कि तुम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानो। इसमें बताया गया है कि आंतरिक ऊर्जा ही सृष्टि को व्याप्त बनाती है। Aसृष्टि का निर्माण करती है और नष्ट कर सकती है।
(अध्याय -9) विभूति योग :-
इस अध्याय में कुल 42 श्लोक है। इस में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मैं पूरी जगत माया को अंश मात्र से धारण किया हुआ हूं। इसीलिए मुझे ही तत्वों के रूप में जानना चाहिए।
(अध्याय -10) विश्वस्वरूपदर्शन योग :-
इस अध्याय में कुल 55 श्लोक है। इसमें श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सारा संसार मुझ में ही निहित है। अर्जुन के कहने पर श्री कृष्ण अपना विश्व रूप धारण करते हैं जिसे देखकर महाभारत के नायक अर्जुन आश्चर्यचकित होते हैं।
श्रीमद् भागवत गीता पढ़ने के लाभ और फायदे
- जो लगातार भागवत गीता का अध्ययन करता है उसका मन नियंत्रण में रहता है।
- गीता पढ़ने वाले व्यक्ति का मन शांत रहता है।
- श्रीमद् भागवत गीता पढ़ने वाले व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है।
- क्रोध, लाभ, माया और कम से दूर होता है।
- गीता अध्ययन करने से व्यक्ति को सच और झूठ समझने का गुण विकसित होता है।
निष्कर्ष
दोस्तों, इस लेख के माध्यम से आपने Bhagvat Geeta Book PDF Download के बारे में जाना है। हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख मे दिए गए लिंक के माध्यम से आप किताब को डाउनलोड करके जरुर पढ़ेंगे और आध्यात्मिकता से जुड़ेंगे।
ऊपर के blog से संबंधित कोई भी संदेह या प्रश्न आपके मन में है तो हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।
You May Also Read
- Class 10 Social Science Notes PDF in Hindi
- Yuva Upnishad Book PDF
- Bharat ko Jano Book PDF
- Gujarati Bhajan Book PDF Free Download
- Mahabharat Book In Hindi PDF
FAQ’s
गीता जी का कौन सा अध्याय पढ़ना चाहिए?
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध में श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित करना चाहिए।
क्या हम घर पर भगवद गीता पढ़ सकते हैं?
भगवत गीता, जो महाभारत का एक भाग है, कोई भी घर पर पढ़ सकता है। लेकिन किसी योग्य गुरु के सानिध्य में सीखना बेहतर है। या आप इसे अच्छे अनुवाद या टिप्पणी के साथ पढ़ सकते हैं, ऐसे में अनुवादक या टिप्पणीकार गुरु के समान है। श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 07 श्लोक 15 में क्या लिखा है?
गीता से पहले क्या पढ़ना चाहिए?
पाठ आरंभ करने के पहले भगवान गणेश और श्री कृष्ण जी का ध्यान करें। गीता पढ़ने से पहले उस विशेष अध्याय का गीता महात्म्य अवश्य पढ़ें।